हिंदी कहानियां - भाग 203
पागल हाथी
पागल हाथी मोती राजा साहब की खास सवारी का हाथी था। यों तो वह बहुत सीधा और समझदार था, पर कभी-कभी उसका मिजाज गरम हो जाता था और वह आपे में नहीं रहता था। उस हालत में उसे किसी बात की सुध न रहती थी और वह महावत का दबाव भी नहीं मानता था। एक बार इसी पागलपन में उसने अपने महावत को मार डाला। राजा साहब ने यह खबर सुनी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन गई। उसे राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुली की तरह उसे लकड़ियां ढोनी पड़तीं, पत्थर लादने पड़ते और शाम को उसे पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बांध दिया जाता। बढि़या खाना बंद हो गया। उसके सामने सूखी टहनियां डाल दी जाती थीं और उन्हीं को चबाकर, वह पेट की आग बुझाता। जब वह अपनी इस दशा को अपनी पहली दशा से मिलाता, तो वह बहुत चंचल हो जाता। वह सोचता, कहां मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था और कहां आज मामूली मजदूर हूं!यह सोचकर जोर-जोर से चिंघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि उसने लोहे की जंजीरें तोड़ डालीं और जंगल की तरफ भाग गया। मोती जंगल की ओर चला। इधर राजा साहब के आदमी उसे पकड़ने के लिए दौड़े, मगर डर के कारण कोई उसके पास न जा सका। जंगल में पहुंचकर मोती पुराने साथियों को ढूंढ़ने लगा। जब वह कुछ दूर और आगे बढ़ा, तो उसे हाथियों का झुंड दिखाई दिया। खुश होकर वह उनसे मिलने दौड़ा, मगर जंगल के हाथियों ने जब उसके गले में रस्सी और पांवों में टूटी जंजीरें देखीं, तो मुंह फेर लिया। उससे बात तक न पूछी। उनका शायद मतलब था कि तुम गुलाम तो थे ही, अब नमकहराम गुलाम हो, तुम्हारी जगह इस जंगल में नहीं है। जब तक वे आंखों से ओझल न हो गए, मोती वहीं खड़ा ताकता रहा। फिर न जाने क्या सोचकर, वहां से भागता हुआ महल की ओर चल दिया। वह रास्ते में ही था कि उसने देखा कि राजा साहब शिकारियों के साथ घोड़े पर चले आ रहे हैं। वह फौरन एक बड़ी चट्टान की आड़ में छिप गया। धूप तेज थी, राजा साहब दम लेने के लिए घोड़े से उतरे। अचानक मोती आड़ से निकल पड़ा और गरजता हुआ राजा साहब की ओर दौड़ा। राजा साहब घबराकर भागे और एक छोटी झोंपड़ी में घुस गए। कुछ देर बाद मोती भी पहुंचा। उसने राजा साहब को अंदर घुसते हुए देख लिया था। पहले तो उसने अपनी सूंड से ऊपर का छप्पर गिरा दिया, फिर उसे पैरों से रौंदकर चूर-चूर कर डाला। भीतर राजा साहब का मारे डर के बुरा हाल था। जान बचने की कोई आशा न थी। आखिर जब कुछ न सूझा, तो वह जान पर खेलकर पीछे दीवार पर चढ़ गए और दूसरी तरफ कूदकर भाग निकले। मोती द्वार पर खड़ा छप्पर रौंद रहा था और सोच रहा था कि दीवार को गिराऊं या नहीं? आखिर उसने धक्का देकर दीवार गिरा दी। मट्टिी की दीवार पागल हाथी का धक्का क्या सहती? मगर जब राजा साहब भीतर न मिले, तो उसने बाकी दीवारें भी गिरा दीं और जंगल की तरफ चला गया। घर लौटकर राजा साहब ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो आदमी मोती को जीवित पकड़कर लाएगा, उसे एक हजार रुपया इनाम दिया जाएगा। कई आदमी इनाम के लालच से उसे पकड़ने के लिए जंगल में गए, मगर उनमें से एक भी न लौटा। मोती के महावत के इकलौते लड़के का नाम था मुरली। अभी वह कुल आठ-नौ बरस का था, इसलिए राजा साहब दया करके उसे और उसकी मां को खाने-पहनने के लिए कुछ खर्च दिया करते थे। मुरली था तो बालक, पर हम्मित का धनी था। वह कमर कसकर मोती को पकड़ लाने के लिए तैयार हो गया। मां ने बहुत समझाया और लोगों ने भी मना किया, मगर उसने किसी की एक न सुनी और जंगल की ओर चल दिया। जंगल में एक पेड़ पर चढ़कर वह गौर से इधर-उधर देखने लगा। आखिर उसने देखा कि मोती सिर झुकाए उसी पेड़ की ओर चला आ रहा है। उसकी चाल से ऐसा मालूम होता था कि उसका मिजाज ठंडा हो गया है। जैसे ही मोती उस पेड़ के नीचे आया, उसने पेड़ के ऊपर से पुचकारा, मोती! मोती इस आवाज को पहचानता था। वह वहीं रुक गया और सिर उठाकर ऊपर देखने लगा। मुरली को देखकर पहचान गया। यह वही मुरली था, जिसे वह अपनी सूंड से उठाकर अपने मस्तक पर बिठा लेता था। मैंने ही इसके बाप को मार डाला है।यह सोचकर उसे बालक पर दया आई। फिर खुश होकर सूंड हिलाने लगा। मुरली उसके मन का भाव पहचान गया। वह पेड़ से नीचे उतरा और उसकी सूंड को थपकियां देने लगा। फिर उसे बैठने का इशारा किया। मोती बैठा नहीं, मुरली को अपनी सूंड से उठाकर पहले ही की तरह अपने मस्तक पर बिठा लिया और राजमहल की ओर चला। मुरली जब मोती को लिए हुए राजमहल के द्वार पर पहुंचा, तो किसी की हम्मित न होती थी कि मोती के पास जाए। मुरली ने कहा, ह्यडरो मत, मोती बल्किुल सीधा हो गया है, अब यह किसी को नहीं मारेगा।ह्ण राजा साहब भी डरते-डरते मोती के सामने आए। उन्हें अचंभा हुआ कि पागल मोती अब गाय की तरह सीधा हो गया है। उन्होंने मुरली को एक हजार रुपए इनाम में दिए और उसे अपना खास महावत बना लिया। मोती फिर राजा साहब का सबसे प्यारा हाथी बन गया।